चंद्रलेखा के लिए करोरी गांव का वह एकांत रास्ता पूर्णतः अज्ञात था। फिर भी, मन में साहस बांध वह एक जोगन की भांति उस गहन अंधकार के सागर में समाती चली गई। उसके इस मनोबल के पीछे का रहस्य प्रितम के प्रति अथांग और अशर्त प्रेम ही था। परंतु दुर्भाग्य से, उस रात लिया हुआ वह अनिश्चित निर्णय चंद्रलेखा को अपने जीवन के किस भयानक पड़ाव तक ले जानेवाला था, इस रहस्य से वह स्वयं भी अज्ञात थी।
Chandralekha - 1585
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