बचपन अपने माँ-बाप की आँखों से देखा और उनके जीवन जीने के तरीके से बहुत कुछ सीखा। संतुष्ट रहना बचपन में ही सीख लिया है कि जो कुछ भी मिलता है वही आपके हिस्से का है, बाकी सब दूसरों का। हम दो भाई हैं और मैं हमेशा से अपने बड़े भाई की नकल उतारता रहा हूँ, शायद सब छोटे भाई यही करते हैं। पढ़ने लिखने में शुरुआत से ही बुरा नहीं था, उसी के चलते स्कूल में अव्वल छात्रों में गिनती होती रही। फ़िर ओडिशा के एक अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई की और अभी कोलकाता में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहा हूँ। नौकरी भी अच्छी चल रही है।
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पेशे से इंजीनियर, युवा हिन्दी लेखक जैनेन्द्र सिंह मूल रूप से सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश से ताल्लुक़ रखते हैं। इन्होंने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राउरकेला, ओडिशा (National Institute of Technology, NIT Rourkela) से रासायनिक अभियांत्रिकी (Chemical Engineering) की शिक्षा हासिल की है। फ़िलहाल जैनेन्द्र जी कोलकाता स्थित एक निजी कम्पनी (Private Company) में प्रोसेस इंजीनियर (Process Engineer) के पद पर कार्यरत हैं। प्रस्तुत पुस्तक ज़िन्दगी के दोहरे आयाम और उसके हर पहलू को ख़ुद में समेटे है। एक युवा लेखक का ज़िन्दगी के प्रति गहन विशलेषण पाठकों को ख़ासा पसंद आएगा।
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