मन का सच एक अनोखी नियामत हैं जो केवल इन्सान के बूते की बात हैं। बात उस पीढ़ी के सिद्धांतो और आदर्शों पर जय-जयकार करने की नहीं हैं, न ही उन सिद्धांतो और आदर्शों को प्रतिपादित करने की है। बात उन सिद्धांतो और आदर्शों को जीने की हैं। उस पीढ़ी के योग्य उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें जीवित रखने की है। इस पीढ़ी के एक ज़िम्मेदार प्रतिनिधि के रूप में उन्हें आत्मसात कर उन्हें प्रेरित करने की हैं।
सत्य के लिए स्वयं मिटना पड़ता हैं और सत्ता के लिए दूसरों को मिटाना पड़ता हैं। लेकिन कोई भी सत्ताधीश इतिहास से यह सबक नहीं ले पाता, कि आज तक सत्य के अलावा किसी की भी सत्ता अक्षुण्ण नहीं रही।
राम का पूरा जीवन हमें यह सब बड़ी शालीनता से सिखाता है।
राम मेरे जीवन के प्रकाश पुंज हैं। राम मेरी वह अप्रतिम शक्ति हैं...
जो मेरे अन्दर विचारों का घमासान बनाये रखती है,
लेकिन मुझे उतना ही शांत भी रखती है।
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यूनियन बैंक ऑफ़ इण्डिया (Union Bank of India) में प्रबन्धक (Manager), मूल रुप से मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के पंधानिया गाँव से ताल्लुक रखने वाले युवा हिन्दी लेखक महेन्द्र इस वक़्त इंदौर में रहते हैं। अपने गाँव से प्राथमिक शिक्षा, इंदौर से सूचना प्रोद्योगिकी में इंजिनियरिंग, हैदराबाद से बैंकिग, इंश्योरेंस और वित्तीय सेवाओं में PGDM और IGNOU नई दिल्ली से लोक प्रशासन में एम.ए करने के बाद वर्तमान में वह बैंकिंग क्षेत्र में पिछले 7 वर्षों से कार्यरत हैं। महेन्द्र दो बार UPSC की मेंस और एक बार MPPSC का मेंस भी पास कर चुके हैं। व्यवहारिक ज्ञान को मानव की सर्वश्रेष्ठ कमाई मानने वाले महेन्द्र अपने दादाजी की कर्मवीर और कालजयी पीढ़ी से काफी प्रेरित हैं। उनके पुस्तक का शीर्षक "कर्मसु कौशलम्" श्रीमद्भागवत गीता के दूसरे अध्याय के पचासवें श्लोक से लिया गया है और उनके दादाजी की पीढी को समर्पित है। महेन्द्र हिन्दी साहित्य में विशेष रुचि रखते हैं। अंग्रेजी और हिन्दी पर बराबर पकड़ होने के बावजूद वह हिन्दी में लिखना ज्यादा उचित समझते हैं क्योंकि उनका मानना है कि हिन्दी, हिन्दुस्तान की भाषा है और सीधे दिल तक पहुँचती है।
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