“श्रीमद्भगवद् गीता” जिसे पाँचवाँ वेद कहा गया है। महाभारत का एक महत्वपूर्ण वो अध्याय है, जिसे यदि मानव अपने जीवन में आत्मसात कर ले, फिर कभी भी वो आशा-निराशा के भ्रमित जाल में नहीं फँसेंगे। आशा-निराशा ही सुख-दुःख के कारण हैं। विवेक के नाश के कारण भी ये आशा-निराशा, लाभ-हानि हैं। ये ही मानव को पतन की ओर ले जाते हैं, यही संदर्भ श्रीकृष्ण के वचनामृत से अर्जुन के लिये निसृत किया गया मूल स्त्रोत है।
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प्रख्यात शिक्षाविद्, वरिष्ठ हिन्दी लेखिका डॉ. शुभा मेहता मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर से ताल्लुक़ रखती हैं। शुभा जी गवर्नमेंट कॉलेज, दुर्ग (म.प्र) में व्याख़्याता (Lecturer) रह चुकी हैं। तत्पश्चात्, जबलपुर विश्वविद्यालय (Jabalpur University) में रिसर्च असिसटेंट (Research Assistant) और उसके बाद केन्द्रीय विद्यालय संगठन से जुड़ी रहीं हैं। शुभा जी संस्कृत से एम.ए (M.A),पी एच.डी (Ph.D) हैं एवं हिन्दी साहित्य से एम.ए (M.A) भी कर चुकी हैं। इस किताब से पहले शुभा जी “नीर आज बहने दो” एवं "दस्तक" नामक ख़ूबसूरत काव्य संग्रह लिख चुकी हैं जो पाठकों के लिए उपलब्ध है। तीसरा काव्य संग्रह “मन की यात्रा” शुभा जी के अनुभवी लेखन की नई कड़ी के रूप में देखा जा सकता है।
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