जिन लोगों को सकारात्मकता और किज़्बी हयात ने नोच खाया है यह पुस्तक उन लोगों से कोसों बई'दी इख़्तियार कर रहे तो ही हसन है। इत्तिला करता चलूँ इस मज़मूए में 10 अफ़साने शरीक हैं जिसमें इंसानी नफसियात, मुआशरे का नंगापन, काज़िबी, और पाखंड-सालूस लबालब नुमूद किया गया है। मुताल'अ करना और इंकिलाब बरपाना मैं अपने दक़ीका-रसी व तीव्रप्रतिभा पाठकों के ऊपर तर्क कर रहा हूँ।
Takhta-E-Siyah
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