“विमोह“ आठ कविताओं का संग्रह, एक सौ इकतीस पृष्ठों में संकलित है। इन ८ कविताओं के माध्यम से महाकाव्य महाभारत और श्रीमद्भगवद् गीता के रूपकों पर कुछ विचार व्यक्त करने की कोशिश की गई है। इन कविताओं के लिये, श्री श्री परमहंस योगानंद जी द्वारा लिखी हुई “ईश्वर-अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद् गीता” मार्गदर्शन व प्रोत्साहन का स्रोत रहीं है, जहाँ सृष्टि व जीवन दर्शन पर चर्चा अप्रतिम सुंदरता से की गई है। विमोह मनःस्थिति का वह भटकाव है जो हमें हमारे लक्ष्यों में सफल होने से रोकती है। भटकाव की उत्पति मुख्यतः तीन दोषों से होती है, १) वासना, २) तृष्णा और ३) अहंता। महाभारत में ये तीन दोष कौरवों में प्रधान रूप से देखा गया है। सृष्टिकर्ता ने मनुष्य को सृजन की एक विलक्षण शक्ति से सुसज्जित किया है। यह शक्ति है 'मन', गूढ़ शब्दों में 'चेतन-शक्ति'। इस शक्ति का सामर्थ्य असीम है। इसका उपयोग या दुरूपयोग दोनों किया जा सकता है। हमारे पौराणिक कथाओं, देवगाथा, महाभारत, गीता, पुराण-संग्रह, इत्यादि इन्हीं सूक्ष्म शक्तियों और 'चेतन- शक्ति' का भान कराती हैं। शरीर को अध्यात्म में पिण्ड माना गया है। यह पिण्ड पाँच प्राणों से लैस है जिन्हें पंचमहातत्व कहा जाता है - भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश। महाभारत में ये पाँच 'पांडव' हैं। उन्हें उर्जित करती है प्राण शक्ति, जो यज्ञ से जन्मी 'द्रौपदी' है। जब किसी व्यक्ति को प्राणशक्ति के दुरुपयोग (द्रोपदी चीरहरण) का आभास होता है, तब वह एक तपस्वी बन, अपनी चेतन-शक्ति व ईश-अभ्याप्ति (कृष्ण) के मार्गदर्शन से अपने पंचमहाभूतों (पांडवों) को उर्जित, नियंत्रित व संतुलित करने के पावन एवं प्रगाढ़ प्रक्रिया पर कार्यरत हो उठता है। ऐसे ही कुछ विचारों को पुस्तक “विमोह“ में कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया गया है।
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प्रतिष्ठित मनोवैज्ञानिक, डॉ. दीप्ति प्रिया मूल रूप से दरभंगा, बिहार से ताल्लुक़ रखती हैं एवं फ़िलहाल बेंगलुरु, कर्नाटक में मनोवैज्ञानिक के तौर पर कार्यरत हैं। डॉ. दीप्ति ने मनोविज्ञान विषय में पीएच.डी (Ph.D) तक की शिक्षा हासिल की है। "बच्चों के सीखने की मनोविज्ञानिक कठिनाईयाँ" जैसे विषय पर एक दशक से निरन्तर कार्यरत हैं एवं वर्तमान में नैदानिक मनोवैज्ञानिक (Clinical Psychologist) के रूप में निजी क्लिनिक के लिए काम करती हैं। डॉ. दीप्ति ने “राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान” (National Institute of Public Co-Operation and Child Development) क्षेत्रीय केंद्र, बेंगलुरु जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के लिए “नैदानिक मनोवैज्ञानिक” और “बाल विकास अधिकारी” (Child development officer) के रूप में भी अपनी सेवाएँ दी हैं। इनके द्वारा लिखे गये कई लेख राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। अध्यात्मिक स्तर पर जीवन प्रशिक्षक (Life Coach) के तौर पर भी जानी जाती हैं। प्रस्तुत पुस्तक से पहले डॉ. दीप्ति द्वारा एक कविता संग्रह 'दीप्राणिका' लिखा जा चुका है। सुझाव एवं लिखित विषय पर अन्य विचारों के लिये आप लेखिका (कवयित्री) डॉ. दीप्ति प्रिया जी से संपर्क कर सकते हैं।
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